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pardeepjaat
लेखक: मुंशी
प्रेमचंद
अंधेरी रात के
सन्नाटे में
धसान नदी
चट्टानों से
टकराती हुई
ऐसी सुहावनी
मालूम होती
थी जैसे घुमुर-
घुमुर करती हुई
चक्कियां. नदी
के दाहिने तट पर
एक टीला है. उस
पर एक पुराना
दुर्ग बना हुआ है
जिसको जंगली
वृक्षों ने घेर
रखा है. टीले के
पूर्व की ओर
छोटा-सा
गांव है. यह गढ़ी
और गांव दोनों
एक बुंदेला
सरकार के
कीर्ति-चिह्न
हैं. शताब्दियां
व्यतीत हो
गयीं बुंदेलखंड में
कितने ही
राज्यों का
उदय और अस्त
हुआ मुसलमान
आये और बुंदेला
राजा उठे और
गिरे-कोई गांव
कोई इलाक़ा
ऐसा न था जो
इन दुरवस्थाओं
से पीड़ित न हो
मगर इस दुर्ग पर
किसी शत्रु की
विजय-पताका
न लहरायी और
इस गांव में
किसी
विद्रोह का
भी पदार्पण. न
हुआ. यह उसका
सौभाग्य था.
अनिरुद्धसिंह
वीर राजपूत
था. वह ज़माना
ही ऐसा था जब
मनुष्यमात्र को
अपने बाहुबल
और पराक्रम ही
का भरोसा
था. एक ओर
मुसलमान
सेनाएं पैर जमाये
खड़ी रहती थीं
दूसरी ओर
बलवान राजा
अपने निर्बल
भाइयों का
गला घोंटने पर
तत्पर रहते थे.
अनिरुद्धसिंह के
पास सवारों
और पियादों
का एक छोटा-
सा मगर सजीव
दल था. इससे वह
अपने कुल और
मर्यादा की
रक्षा किया
करता था. उसे
कभी चैन से
बैठना नसीब न
होता था.
तीन वर्ष पहले
उसका विवाह
शीतला देवी से
हुआ था मग
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